Samudra Manthan: दीवाली का त्योहार भारत के सबसे महत्वपूर्ण और भव्य उत्सवों में से एक है। इस पर्व को कई धार्मिक और पौराणिक कथाओं से जोड़ा जाता है, लेकिन इनमें से सबसे दिलचस्प और महत्वपूर्ण है समुद्र मंथन की कथा। इस महाकाव्य घटना में न केवल मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ, बल्कि अमृत का भी उदय हुआ, जो अमरत्व का प्रतीक है। आइए जानते हैं समुद्र मंथन की इस पौराणिक कथा का दीवाली से क्या संबंध है और कैसे यह त्योहार समृद्धि और धन का प्रतीक बन गया।
समुद्र मंथन की कथा विष्णु पुराण और अन्य पुराणों में विस्तृत रूप से वर्णित है। यह कथा तब शुरू होती है, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन करने का निर्णय लिया। अमृत वह दिव्य तरल था जो अमरत्व का प्रतीक था, और इसे प्राप्त करना दोनों के लिए अनिवार्य था। इस प्रक्रिया में मंदराचल पर्वत को मंथन की धुरी और नाग वासुकी को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया। देवता और असुर दोनों मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे, लेकिन इस प्रक्रिया में कई अनोखी और चमत्कारी चीजें समुद्र से प्रकट हुईं।
समुद्र मंथन के दौरान, अमृत के साथ-साथ कई दिव्य रत्न और देवताएँ प्रकट हुईं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण थीं मां लक्ष्मी। लक्ष्मी जी का प्राकट्य समुद्र मंथन से हुआ, और वे धन, समृद्धि, और ऐश्वर्य की देवी मानी जाती हैं। उनकी उत्पत्ति के साथ ही उनका विवाह भगवान विष्णु से हुआ, और तब से वे विष्णु की अर्धांगिनी बनकर उनके साथ रहती हैं। दीवाली का मुख्य दिन लक्ष्मी पूजन का होता है, और यह इस कथा से गहराई से जुड़ा हुआ है। लक्ष्मी जी का प्राकट्य इस बात का प्रतीक है कि जहां धन, समृद्धि और ऐश्वर्य होता है, वहां सुख और शांति भी होती है।
मां लक्ष्मी के साथ-साथ समुद्र मंथन से अमृत कलश भी प्रकट हुआ। अमृत वह दिव्य पेय था, जिसे पीने से देवता और असुर अमर हो सकते थे। हालांकि, विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण करके अमृत को केवल देवताओं को दिया और असुरों को इससे वंचित रखा। अमृत का यह कलश एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो दीवाली के अवसर पर लक्ष्मी पूजन के साथ जुड़ा हुआ है। लक्ष्मी जी के आशीर्वाद से यह माना जाता है कि दीवाली पर धन और समृद्धि की प्राप्ति से व्यक्ति के जीवन में स्थायी सुख और शांति बनी रहती है।
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समुद्र मंथन से केवल लक्ष्मी जी और अमृत ही नहीं, बल्कि कई और अद्भुत चीजें भी निकलीं। इसमें कामधेनु (इच्छाओं को पूरा करने वाली गाय), कल्पवृक्ष (इच्छाओं को पूरा करने वाला पेड़), और चंद्रमा जैसे रत्न भी शामिल थे। इन सभी वस्तुओं का अलग-अलग धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, लेकिन दीवाली के अवसर पर लक्ष्मी जी का प्राकट्य और अमृत कलश का उदय सबसे महत्वपूर्ण घटनाएँ मानी जाती हैं। यह उत्सव समृद्धि और धन की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है, और लक्ष्मी पूजन के साथ इसे खास तौर पर जोड़ा गया है।
समुद्र मंथन की कथा के बाद, दीवाली का त्योहार मां लक्ष्मी की पूजा और समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस दिन घरों में लक्ष्मी पूजन किया जाता है, और यह विश्वास किया जाता है कि मां लक्ष्मी उन घरों में वास करती हैं, जहां साफ-सफाई, सजावट और प्रकाश होता है। इसलिए, दीवाली के दिन घरों की सफाई, दीयों से सजावट और मां लक्ष्मी का स्वागत करना बेहद महत्वपूर्ण होता है। यह केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि समृद्धि और सौभाग्य को आकर्षित करने का प्रतीक है।
दीवाली का त्योहार न केवल रोशनी और खुशियों का उत्सव है, बल्कि यह समुद्र मंथन की उस पौराणिक कथा से भी जुड़ा है, जिसने धन और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया। मां लक्ष्मी का प्राकट्य और अमृत की प्राप्ति इस त्योहार के पीछे की मुख्य घटनाएँ हैं, जो इसे इतना महत्वपूर्ण बनाती हैं। इस दीवाली, मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए घर को सजाएं, दीप जलाएं और इस पौराणिक कथा को याद करते हुए समृद्धि और सुख-शांति की कामना करें।