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America को Columbus ने खोजा, फिर नाम Amerigo के नाम पर क्यों पड़ा? सच्चाई जानकर चौंक जाएंगे!

आपने अक्सर सुना होगा कि “अमेरिका की खोज क्रिस्टोफर कोलंबस ने की थी।” लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिस जगह की उसने खोज की, उसका नाम “अमेरिका” क्यों पड़ा, जबकि खोजकर्ता तो कोलंबस था? कहानी जितनी सीधी लगती है, उतनी है नहीं — इसमें भ्रम, रोमांच, और ऐतिहासिक विडंबनाओं से भरी एक दिलचस्प यात्रा छुपी हुई है।

15वीं सदी का अंत था, जब यूरोप व्यापार के नए रास्तों की तलाश में बेताब था। भारत और पूर्व के देशों से मसालों, रेशम, कीमती पत्थरों और दूसरी समृद्ध वस्तुओं का व्यापार यूरोप के लिए अत्यंत लाभदायक था। लेकिन ज़मीनी रास्ते लंबे, जोखिम भरे और कभी-कभी तुर्क साम्राज्य के कारण बंद हो जाते थे। ऐसे में ज़रूरत थी एक सीधे समुद्री रास्ते की, जो यूरोप को सीधे भारत से जोड़े।

Illustration of Christopher Columbus and Amerigo Vespucci discovering the New World, depicting the origin of America's name

इटली के जेनोआ नगर में जन्मे क्रिस्टोफर कोलंबस, एक साहसी नाविक और खोजी यात्री, इसी समुद्री रास्ते की तलाश में समुद्र की ओर निकल पड़े। वर्ष था 1492 — जब कोलंबस ने स्पेन की रानी इसाबेला और राजा फर्डिनेंड के आर्थिक सहयोग से तीन जहाज़ों — Santa Maria, Pinta, और Niña के साथ पश्चिम दिशा में यात्रा शुरू की, यह मानते हुए कि पृथ्वी गोल है और अगर वो पश्चिम की ओर सीधे चलें, तो भारत पहुँच जाएंगे।

लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, इतिहास अपने रास्ते खुद तय करता है।

कोलंबस भारत ढूँढने चला था, लेकिन पहुँचा कहाँ? एक ऐसे भूभाग पर, जिसे आज हम अमेरिका कहते हैं। असल में कोलंबस जब कैरेबियन द्वीपों के पास पहुँचा — जैसे कि बहामास, क्यूबा, और हिस्पानियोला — तो उसे पूरा यकीन था कि यही पूर्वी भारत है। उसने वहाँ के मूल निवासियों को बिना किसी संकोच के “Indians” कहना शुरू कर दिया, यह मानते हुए कि वह भारतीय उपमहाद्वीप पर पहुँच गया है। इसी भ्रम का असर इतना गहरा हुआ कि आज भी अमेरिका के मूल निवासी “Native Americans” को कई बार “American Indians” कहा जाता है।

मजेदार बात यह है कि कोलंबस को अपनी इस ऐतिहासिक भूल का कभी भी पूरी तरह एहसास नहीं हुआ। वह जीवन भर यही मानता रहा कि उसने एशिया का नया समुद्री रास्ता खोज लिया है।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती।

कुछ वर्षों बाद, 1499 में, कोलंबस के ही देश इटली से एक और नाविक, Amerigo Vespucci, उस नए भूभाग की ओर रवाना हुआ। वह अत्यंत ज्ञानी, पर्यवेक्षक और खगोलविज्ञान का अच्छा जानकार था। उसने जब वहाँ की भौगोलिक बनावट, जलवायु, वनस्पतियों और लोगों को देखा, तो उसे संदेह हुआ — यह तो भारत जैसा बिल्कुल भी नहीं है!

1502 में अमेरिगो ने फिर से उस क्षेत्र की यात्रा की और पूरी दृढ़ता से यह निष्कर्ष निकाला कि यह जगह न तो भारत है और न ही एशिया का कोई भाग — यह तो एक नया महाद्वीप है! उसने इस खोज को विस्तार से यात्रा वृत्तांतों में लिखा और यूरोप भर में प्रचारित किया कि यह ‘नवीन विश्व’ है — The New World

अब यहाँ आती है इतिहास की सबसे दिलचस्प घड़ी।

वर्ष 1507 में, एक जर्मन भूगोलवेत्ता और मानचित्रकार Martin Waldseemüller ने विश्व का एक नया नक्शा तैयार किया। वह अमेरिगो वेस्पूची से बेहद प्रभावित था, इतना कि उसे गुरु जैसा मानता था। इसलिए जब उसने नवीन विश्व को मानचित्र में दर्शाने की बारी आई, तो उसने सोचा कि उस महाद्वीप का नाम अमेरिगो के सम्मान में रखा जाए।

पर उस समय यूरोप में एक परंपरा थी — देशों और महाद्वीपों के नाम स्त्रीलिंग रूप में रखे जाते थे। इसलिए अमेरिगो (Amerigo) का स्त्रीलिंग लैटिन रूप ढूंढा गया और वह नाम मिला — America

बस, यहीं से उस नए महाद्वीप का नाम पड़ा अमेरिका

यानी जिसने वह धरती खोजी — कोलंबस, उसके नाम पर नहीं; बल्कि जिसने उसे सही-सही पहचाना — अमेरिगो, उसके नाम पर इस नई दुनिया को पहचाना जाने लगा।

यह एक ऐतिहासिक विडंबना ही है कि कोलंबस, जिसने अज्ञानवश अमेरिका की खोज की, उस महाद्वीप को अपना नाम नहीं दे सका। और अमेरिगो वेस्पूची, जिसने सिर्फ सही पहचान की, उसका नाम इतिहास में अमर हो गया।

कोलंबस को इस बात की भनक भी नहीं लगी थी कि उसने एक नए युग का द्वार खोल दिया है — एक नया महाद्वीप, एक नई पहचान और एक नई दुनिया, जिसकी खोज भले ही संयोग से हुई हो, पर उसका असर समस्त मानव इतिहास पर पड़ा।

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