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छठ पूजा: सूर्यदेव को प्रसन्न करने की वो अद्भुत कथा, जो सदियों से है चली आ रही!

Chhath puja

छठ पूजा (Chhath Puja) भारत के प्राचीन और सबसे पवित्र त्योहारों में से एक है, जिसमें सूर्य देव की उपासना की जाती है। इस पर्व की खासियत यह है कि इसमें कोई मूर्ति पूजन नहीं होता, बल्कि प्रकृति के तत्वों – सूर्य, जल और पृथ्वी – की पूजा की जाती है। छठ पूजा की पौराणिक कथा और इसके पीछे के धार्मिक रहस्य इसे और भी विशेष बनाते हैं। आइए जानते हैं छठ पूजा के शुरू होने की कथा और सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करने का रहस्य।

छठ पूजा की शुरुआत के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख हैं महाभारत और रामायण से जुड़ी कहानियाँ। इस पूजा को लेकर मान्यता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से सूर्यदेव की उपासना करते हैं, उन्हें जीवन में समृद्धि, आरोग्य और लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है।

महाभारत से जुड़ी छठ पूजा की कथा: सूर्यपुत्र कर्ण की भक्ति

महाभारत में, छठ पूजा का सबसे प्राचीन उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन सूर्यदेव की उपासना करते थे। वे गंगा के किनारे खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे और उनसे अपार शक्ति प्राप्त करते थे। कर्ण की अटूट भक्ति और शक्ति का मुख्य स्रोत सूर्यदेव ही थे, जिनकी कृपा से वे अजेय योद्धा बने। इसी कथा के अनुसार, छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा शुरू हुई। यह उपासना सूर्यदेव से शक्ति और आरोग्य प्राप्त करने का प्रतीक मानी जाती है।

रामायण से छठ पूजा का संबंध: माता सीता द्वारा सूर्य पूजन

छठ पूजा की एक और प्रमुख कथा रामायण से जुड़ी है। जब भगवान श्रीराम और माता सीता 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटे, तो उन्होंने राजतिलक से पहले सूर्यदेव की उपासना की थी। इस उपासना का उद्देश्य था, जीवन में शक्ति और समृद्धि प्राप्त करना। यह माना जाता है कि माता सीता ने सरयू नदी के किनारे सूर्यदेव को अर्घ्य दिया था और इस पूजा से ही छठ पर्व की शुरुआत मानी जाती है। यही कारण है कि आज भी छठ पूजा विशेष रूप से गंगा, यमुना, सरयू जैसी पवित्र नदियों के किनारे की जाती है।

सूर्यदेव की महिमा और छठ पूजा का ज्योतिषीय महत्त्व

छठ पूजा न केवल पौराणिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका ज्योतिषीय महत्त्व भी है। सूर्यदेव को जीवनदाता, ऊर्जा का स्रोत और रोगनाशक देवता माना जाता है। सूर्य की किरणों से शरीर की विभिन्न बीमारियों का इलाज संभव है, और यह भी माना जाता है कि छठ पूजा के दौरान सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और स्वास्थ्य का प्रवाह होता है। इसलिए, छठ पर्व के समय व्रतधारी सूर्यास्त और सूर्योदय के समय जल में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं, ताकि सूर्य की किरणें उन्हें ऊर्जा और शक्ति प्रदान करें।

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छठ पूजा के चार दिनों का महत्व: आत्मशुद्धि और समर्पण का पर्व

छठ पूजा चार दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व है, और हर दिन का अपना महत्व होता है:

  • पहला दिन (नहाय खाय): इस दिन व्रतधारी नदी या तालाब में स्नान करके शुद्ध आहार ग्रहण करते हैं। यह दिन आत्मशुद्धि का प्रतीक है।
  • दूसरा दिन (खरना): इस दिन पूरे दिन उपवास रखा जाता है और सूर्यास्त के बाद व्रतधारी गुड़ और चावल की खीर खाते हैं।
  • तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य): इस दिन व्रतधारी जल में खड़े होकर सूर्यास्त के समय सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। यह सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है।
  • चौथा दिन (उषा अर्घ्य): अंतिम दिन, सूर्योदय के समय सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है और पूजा संपन्न होती है। इसके बाद व्रतधारी अपना व्रत तोड़ते हैं।

छठ पूजा का महत्व और संदेश

छठ पूजा का मुख्य संदेश है – प्रकृति और सूर्यदेव के प्रति आभार प्रकट करना। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में स्वास्थ्य और समृद्धि का स्रोत प्राकृतिक शक्तियों में है, और हमें इन शक्तियों का सम्मान करना चाहिए। सूर्य की उपासना से हमें आत्मिक शांति और आरोग्य मिलता है। इसके साथ ही, छठ पूजा हमें अनुशासन, समर्पण और आत्मशुद्धि की शिक्षा भी देती है। इस पर्व के दौरान लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए व्रत रखते हैं और परिवार की समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।

छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह प्रकृति और सूर्यदेव के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने का पर्व है। महाभारत के कर्ण से लेकर रामायण की माता सीता तक, इस पवित्र पर्व के पीछे कई पौराणिक कहानियाँ हैं। छठ पूजा के दौरान आत्मशुद्धि, अनुशासन, और सूर्य की उपासना से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। इस पर्व का महत्व आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना सदियों पहले था।

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Published by
Subham Sharma