जब भी हम गाजर की कल्पना करते हैं, हमारे दिमाग में एक ताज़ी, कुरकुरी और चमकीली नारंगी गाजर की तस्वीर बनती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गाजर हमेशा से नारंगी ही होती थी?
अगर आपका जवाब “हाँ” है, तो आपको जानकर हैरानी होगी कि गाजर की मूल किस्में बैंगनी, पीली, लाल और सफेद रंग की थीं — नारंगी नहीं!

गाजर का प्राचीन इतिहास
गाजर की खेती की शुरुआत लगभग 5000 साल पहले मध्य एशिया, विशेषकर ईरान और अफगानिस्तान के क्षेत्रों में हुई मानी जाती है।
उस समय की गाजरें आज की तरह मीठी और मुलायम नहीं थीं। वे अक्सर रेशेदार और थोड़ी कड़वी हुआ करती थीं और उनका रंग बैंगनी या सफेद होता था। इन रंगों में प्राकृतिक रसायन एंथोसायनिन (Anthocyanin) पाया जाता है, जो गहरे रंग के फल-सब्ज़ियों में आम होता है।
नारंगी गाजर की शुरुआत: एक डच कहानी
तो फिर गाजर नारंगी कब और कैसे हुई?
यह कहानी जाती है 16वीं-17वीं सदी के नीदरलैंड तक।
नीदरलैंड (Netherlands) का एक बहुत प्रभावशाली और ऐतिहासिक राजघराना है जिसे कहा जाता है:
👉 House of Orange-Nassau (हाउस ऑफ ऑरेंज-नैसाउ)।
- इसका नाम “ऑरेंज” (Orange) दक्षिणी फ्रांस के एक छोटे से क्षेत्र “Principality of Orange” से आया था, जो इस परिवार की विरासत में शामिल था।
- विलियम ऑफ ऑरेंज (William of Orange) को डच स्वतंत्रता संग्राम (Dutch Revolt) का नायक माना जाता है।
उन्होंने 16वीं शताब्दी में स्पेनिश राजशक्ति के खिलाफ लड़ाई लड़ी और नीदरलैंड को आज़ादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
इसलिए विलियम और उनका राजघराना डच जनता के लिए राष्ट्रीय गर्व और आज़ादी के प्रतीक बन गए।
16वीं-17वीं शताब्दी में, जब नीदरलैंड में कृषि और बागवानी तेजी से विकसित हो रही थी, तब डच किसानों ने एक नया प्रयोग किया:
- उन्होंने बैंगनी और पीली गाजर की किस्मों को मिलाकर एक ऐसी किस्म विकसित की, जो थी चमकीली नारंगी रंग की।
अब यहाँ मजेदार बात यह है कि उस समय नारंगी रंग डच राष्ट्रवाद और “हाउस ऑफ ऑरेंज” का प्रतीक बन चुका था।
👉 इसलिए ऐसा माना जाता है कि किसानों ने जानबूझकर नारंगी गाजर को उगाया —
राजघराने के प्रति सम्मान जताने के लिए।
धीरे-धीरे नारंगी गाजर को इतना बढ़ावा मिला कि यह पूरे नीदरलैंड और फिर पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गई।
“नारंगी गाजर” बना राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक
- नीदरलैंड के झंडे और फुटबॉल टीम का रंग आज भी नारंगी है — यह सब उसी “हाउस ऑफ ऑरेंज” से प्रेरित है।
- गाजर की इस किस्म को रॉयल ट्रिब्यूट (Royal Tribute) के रूप में देखा गया —
और डच किसानों ने इसे सिर्फ फसल नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति का प्रतीक बना दिया।
क्या है नारंगी रंग का राज?
नारंगी गाजर में मौजूद रंग आता है बीटा-कैरोटीन (Beta-Carotene) से, जो शरीर में जाकर विटामिन A में बदलता है।
विटामिन A आंखों की रोशनी, त्वचा और इम्यून सिस्टम के लिए बेहद ज़रूरी होता है।
इसकी तुलना में बैंगनी गाजर में एंथोसायनिन नामक एंटीऑक्सिडेंट ज्यादा पाया जाता है, जो शरीर में सूजन और रोगों से लड़ने में मदद करता है।
आज भी मिलती हैं रंग-बिरंगी गाजरें
हालांकि आज नारंगी गाजर सबसे आम है, लेकिन अगर आप जैविक खेती (organic farming) या पारंपरिक मंडियों में जाएं, तो आपको आज भी बैंगनी, पीली, लाल और सफेद गाजरें देखने को मिल सकती हैं।
इन विविध रंगों वाली गाजरों का स्वाद भी थोड़ा अलग होता है — कुछ हल्के तीखे, कुछ अधिक मीठे और कुछ बिल्कुल सौम्य।
निष्कर्ष: गाजर सिर्फ स्वाद नहीं, इतिहास भी है!
गाजर का रंग केवल उसकी पोषण सामग्री ही नहीं दर्शाता, बल्कि यह इंसान की कृषि-ज्ञान, संस्कृति और राजनीति की कहानी भी कहता है।
नारंगी गाजर, जो हमें आज इतनी सामान्य लगती है, असल में इंसानों की बनाई हुई एक नई किस्म है — और यह एक रॉयल ट्रिब्यूट का हिस्सा भी रही है।
तो अगली बार जब आप गाजर खाएं, तो याद रखें — उसके हर रंग के पीछे छुपा है विज्ञान और इतिहास का अनोखा मेल।