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दिल्ली की सांसें फंसी, फिर हुआ हवा में जहर का धमाका!

Delhi Pollution

दिवाली की रात रोशनी से जगमगाती दिल्ली सुबह तक धुएँ के बादलों में लिपटी दिखी। पटाखों के प्रतिबंध के बावजूद, राजधानी की हवा ‘बहुत खराब’ श्रेणी में जा पहुंची। क्या सिर्फ एक रात की दिवाली के पटाखे हवा को ऐसा बना सकते हैं, या यह सालभर की जमा-पूंजी का परिणाम है? चलिए, जानते हैं इस गंभीर मसले का सच!

दिल्ली के लोगों ने एक बार फिर दिवाली की सुबह जहरीली हवा में सांस ली। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़े बताते हैं कि PM2.5 का स्तर 209.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित सीमा से 14 गुना अधिक है।

पटाखों पर बैन, फिर भी फूटी खामोशी!

दिल्लीवासियों, संभल जाइए! आनंद विहार में AQI 395, अया नगर में 352, जहांगीरपुरी में 390, और द्वारका में 376 तक जा पहुंचा। इन आंकड़ों ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि यह हवा बच्चों और बुजुर्गों के लिए बेहद खतरनाक है।

दिल्ली सरकार ने पहले ही दीवाली पर पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने निवासियों से दीये जलाने और पटाखों से बचने की गुजारिश की थी। उन्होंने कहा था, “दिवाली की रात हमारे लिए निर्णायक है। बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए पटाखों से बचें।

लेकिन ऐसा लगता है कि दीवाली की खुशियों में लोग यह अपील भूल गए। पटाखों की गूंज और धुएँ ने हवा को जहरीला बना दिया। हालांकि, क्या वाकई सिर्फ एक रात के पटाखे ही इतने बड़े प्रदूषण का कारण बन सकते हैं?

सच क्या है? सिर्फ दीवाली जिम्मेदार है?

यह सच है कि दिवाली पर पटाखों का जलना प्रदूषण बढ़ाता है। लेकिन दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या केवल दीवाली तक सीमित नहीं है। सालभर दिल्ली की हवा में जहर घोलने वाले प्रमुख कारण हैं:

  • वाहनों से निकलने वाला धुआँ: दिल्ली की सड़कों पर लाखों गाड़ियाँ दौड़ती हैं, जो प्रदूषण की एक बड़ी वजह हैं।
  • औद्योगिक उत्सर्जन: शहर के आसपास की फैक्ट्रियाँ और कंस्ट्रक्शन का धुआँ भी प्रदूषण में बड़ा योगदान देता है।
  • पराली जलाना: हर साल दिवाली के आसपास, पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से धुएँ की चादर दिल्ली को घेर लेती है।

सच: “पटाखे एक रात जलते हैं, पर धुआँ तो पूरे साल उठता है।”

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दिल्ली सरकार के कदम: हवा में सुधार या बस दिखावा?

दिल्ली सरकार ने प्रदूषण पर काबू पाने के लिए कई कदम उठाए हैं। गोपल राय ने कहा, “पुलिस रात में गश्त करेगी और पटाखों की बिक्री पर नजर रखेगी।” इसके बावजूद, पटाखे फूटे और हवा खराब हो गई।

पर सवाल यह है कि क्या सिर्फ दीवाली पर पटाखे जलाना रोकना ही काफी है? जब सड़कों पर ट्रैफिक धुआँ उड़ाता है, और फैक्ट्रियाँ अपनी मनमानी करती हैं, तब क्यों नहीं होती इतनी चर्चा?

आगे क्या? समाधान क्या है?

दिवाली का ठीकरा फोड़ने से बेहतर है कि हम सालभर प्रदूषण के असली कारणों को पहचानें। हमें चाहिए कि:

  • ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल बढ़े।
  • सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दें और गाड़ियों का इस्तेमाल कम करें।
  • फैक्ट्रियों और कंस्ट्रक्शन से निकलने वाले धुएँ पर सख्त नियंत्रण रखें।
  • पराली जलाने के लिए किसानों को वैकल्पिक समाधान मुहैया कराएं।

भाई, दिल्ली की हवा तो पहले ही तगड़ी टॉक्सिक है, पटाखे तो बस उस पर icing on the cake हैं!

जनता की जिम्मेदारी: सिर्फ दीवाली नहीं, हर दिन करें प्रयास

दिल्ली की हवा को साफ रखना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। हर नागरिक को समझना होगा कि पर्यावरण की रक्षा हमारी भी ज़िम्मेदारी है। पटाखे न चलाना एक शुरुआत हो सकती है, पर असली बदलाव तब आएगा जब हम सालभर पर्यावरण की सुरक्षा का संकल्प लेंगे।

तो अगली बार जब कोई आपको कहे कि दीवाली की वजह से हवा खराब हुई, तो उनसे पूछिए, “भाई, और बाकी 364 दिन क्या, प्रदूषण की छुट्टी थी?” दीवाली खुशी और प्रकाश का पर्व है, इसे दोष देने के बजाय हमें प्रदूषण के हर स्रोत पर काम करना होगा। चलो, हवा को मिलकर सुधारें, एक रात नहीं, पूरे साल!

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Published by
Subham Sharma