जब भी हम दीवाली की बात करते हैं, सबसे पहले हमें भगवान राम की अयोध्या वापसी का स्मरण होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दीवाली केवल राम जी की वापसी का ही पर्व नहीं है? इस पर्व के पीछे और भी कई दिलचस्प कथाएं और वजहें हैं, जिनसे हम अनजान हो सकते हैं। आइए जानते हैं उन कहानियों के बारे में, जिनसे दीवाली का महत्त्व और भी बढ़ जाता है!
दीवाली का त्यौहार भारत के सबसे बड़े और रोशनी से भरपूर पर्वों में से एक है। लेकिन अगर आप सोचते हैं कि हम सिर्फ भगवान राम की अयोध्या वापसी की वजह से दीवाली मनाते हैं, तो रुकिए! इसके पीछे और भी कई कहानियां हैं, जो इस पर्व को और भी रोचक और महत्त्वपूर्ण बनाती हैं।
सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय कारण तो यह है कि भगवान राम 14 साल के वनवास के बाद सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे। रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या के लोग दीयों से पूरे नगर को रोशन कर दिया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि हम दीयों से अंधकार को मिटाकर प्रकाश का स्वागत करते हैं।
महाभारत की कथा के अनुसार, पांडवों को जुए में हारने के बाद 12 साल का वनवास मिला था। वनवास के बाद जब पांडव वापस लौटे, तब उनके स्वागत में पूरे नगर को दीयों से सजाया गया। इस दिन को भी दीवाली के रूप में मनाया जाता है, जब अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा पूरी होती है। यह कहानी हमें बताती है कि दीवाली सिर्फ रामायण से ही नहीं, महाभारत से भी जुड़ी है।
दक्षिण भारत में दीवाली को ‘नरक चतुर्दशी’ के रूप में भी मनाया जाता है, जो भगवान कृष्ण की नरकासुर नामक असुर पर विजय का प्रतीक है। नरकासुर ने धरती पर अत्याचार किए, और भगवान कृष्ण ने उसकी सेना को हराकर धरती को मुक्त कराया। इस जीत की खुशी में लोगों ने दीप जलाए और यह परंपरा आज भी जारी है।
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दीवाली का सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से मनाया जाने वाला कारण है – मां लक्ष्मी का आगमन। कहते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान अमावस्या की रात को मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं और तब से हर साल दीवाली पर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन हम लक्ष्मी पूजन करते हैं, ताकि हमारे घरों में सुख-समृद्धि बनी रहे।
त्रेतायुग के महान राजा बलि, जो अपने दान और धार्मिकता के लिए प्रसिद्ध थे, को भगवान विष्णु ने तीन पग भूमि मांगकर पाताल लोक भेजा। परंतु विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि साल में एक बार वे धरती पर आ सकेंगे। उनकी वापसी के उत्सव के रूप में भी दीवाली का एक दिन मनाया जाता है, जिसे ‘बलिप्रतिपदा’ कहा जाता है।
जैन धर्म में, दीवाली का दिन भगवान महावीर के निर्वाण का दिन है। जैन धर्म के अनुयायी इस दिन को महावीर स्वामी की आत्मा की शांति के रूप में मनाते हैं। वहीं, सिख धर्म में दीवाली को ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, जब गुरु हरगोबिंद जी मुगलों की कैद से छूटे थे।
तो अगली बार जब आप दीवाली के दीये जलाएं, तो सिर्फ राम जी की अयोध्या वापसी की याद न करें, बल्कि उन सभी कहानियों को याद करें जो इस पर्व को और भी खास बनाती हैं। यह त्योहार प्रकाश, अच्छाई और धर्म की जीत का प्रतीक है, और यह हमें जीवन में सकारात्मकता और आनंद का संदेश देता है।