Religion

कौन हैं करवा माता जिनके बाद करवाचौथ का व्रत रखा जाने लगा?

Karwa Mata - Karwachauth

करवाचौथ का व्रत भारतीय समाज में विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस व्रत का संबंध करवा माता से है? करवा माता कौन हैं, और उनका करवाचौथ से क्या संबंध है? आइए, इस पवित्र त्योहार की पूरी कहानी को विस्तार से समझते हैं।

करवा माता की पौराणिक कथा

कहानी के अनुसार, बहुत समय पहले करवा नाम की एक महिला थी, जो बहुत ही धर्मपरायण और साहसी थी। उसका पति मछुआरा था और दोनों का जीवन सुखमय चल रहा था। एक दिन जब करवा का पति नदी में मछली पकड़ने गया, तब अचानक एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया। करवा ने यह देखा तो बिना देरी किए, अपने पति की जान बचाने के लिए आगे बढ़ी। उसने अपने पास मौजूद सूती धागे से मगरमच्छ को बांध दिया और यमराज से प्रार्थना की कि वे मगरमच्छ को सजा दें।

यमराज करवा की भक्ति और साहस से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने मगरमच्छ को मृत्यु का दंड दिया और करवा के पति को लंबी आयु का वरदान दिया। तब से करवा को ‘करवा माता’ के रूप में पूजा जाने लगा और विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करवाचौथ का व्रत रखने लगीं।

करवाचौथ का धार्मिक महत्व

करवाचौथ का महत्व सिर्फ करवा माता की कहानी तक सीमित नहीं है। यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम, विश्वास, और समर्पण को दर्शाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला (बिना पानी के) व्रत रखती हैं और चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत खोलती हैं। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी और करवा माता की पूजा का विशेष महत्व है।

करवाचौथ के रीति-रिवाज

करवाचौथ के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर सरगी खाती हैं। सरगी वह खाना होता है जो सास अपनी बहू को देती है ताकि दिनभर वह बिना भूख और प्यास के रह सके। इसमें फल, मिठाई, ड्राई फ्रूट्स और अन्य पौष्टिक चीजें शामिल होती हैं। दिनभर महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद अपना व्रत तोड़ती हैं।

करवा माता की पूजा विधि

करवाचौथ के दिन करवा माता की पूजा करने का एक विशेष तरीका होता है। महिलाएं मिट्टी के बने एक छोटे बर्तन को ‘करवा’ के रूप में पूजती हैं, जिसमें पानी भरा होता है। करवा माता को फूल, चावल, रोली और मिठाई अर्पित की जाती है। इस पूजा के बाद महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं और उनसे आशीर्वाद लेती हैं।

चंद्रमा का महत्व

करवाचौथ के व्रत में चंद्रमा को बहुत खास माना गया है। चंद्रमा को शांति और दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं रात में चंद्रमा का इंतजार करती हैं और चंद्र दर्शन के बाद ही अपना व्रत तोड़ती हैं। खास बात यह है कि महिलाएं छलनी से पहले अपने पति का चेहरा और फिर चंद्रमा को देखती हैं। यह परंपरा पति के प्रति उनके प्रेम और समर्पण को दर्शाती है।

करवाचौथ आज के समय में

आज के समय में करवाचौथ सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं रह गया है, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते को और मजबूत बनाने का एक उत्सव बन गया है। टीवी शोज और सोशल मीडिया ने इस पर्व को और भी लोकप्रिय बना दिया है। अब करवाचौथ सिर्फ व्रत रखने का दिन नहीं, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते में प्यार और समर्पण का एक खास मौका है।

इस तरह, करवा माता की कहानी हमें सिखाती है कि कैसे एक महिला का साहस और पति के प्रति उसका प्रेम उसे अमर बना सकता है। करवाचौथ का व्रत भी इसी भावना का प्रतीक है, जहां महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए व्रत रखती हैं।

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MyIndiaLive