हिंदू धर्म में व्रतों और त्योहारों का विशेष महत्व है। इन व्रतों के पीछे धार्मिक और सामाजिक कारण होते हैं, जो लोगों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शुभता लाते हैं। ऐसा ही एक पावन व्रत है देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु की योगनिद्रा से जागरण का प्रतीक है और इसी दिन से चार महीने के बाद शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।
देवउठनी एकादशी हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन का इंतजार खास तौर पर उन लोगों को रहता है जो शादी, गृह प्रवेश या अन्य धार्मिक कार्य करना चाहते हैं, क्योंकि चार महीनों के बाद शुभ कार्यों का मुहूर्त इस दिन से फिर से शुरू होता है। आइए, विस्तार से जानते हैं इस दिन का महत्व और इससे जुड़ी अन्य बातें।
इस साल देवउठनी एकादशी 12 नवंबर 2024 को पड़ रही है। यह व्रत कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा के बाद जागते हैं और फिर से सृष्टि का संचालन करते हैं। इस वजह से इसे देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है।
देवउठनी एकादशी का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है। यह दिन भगवान विष्णु के जागरण का प्रतीक है, जो चार महीने के चातुर्मास के बाद होता है। चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते, जैसे शादी, गृह प्रवेश या अन्य धार्मिक अनुष्ठान। इस दिन से ये सारे काम शुरू होते हैं, इसलिए इसे शुभ कार्यों की शुरुआत का दिन भी कहा जाता है।
इसके साथ ही, माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। इस व्रत को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी माना जाता है। लोग इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं ताकि वे उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
देवउठनी एकादशी का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से भी बहुत खास है। जो लोग शादी, गृह प्रवेश या अन्य मांगलिक कार्यों की योजना बना रहे होते हैं, वे इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। इसके पीछे कारण यह है कि चातुर्मास के दौरान शादी, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते। लेकिन देवउठनी एकादशी के बाद से ये कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं, इसलिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
इसके अलावा, इस व्रत को करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना जाता है जो अपने जीवन में कष्टों का सामना कर रहे हैं। व्रत करने से उनके जीवन में सुख और शांति आती है।
इस पावन दिन पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पूजा के समय तुलसी के पौधे का भी विशेष महत्व होता है। भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित किया जाता है और तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें भगवान विष्णु और तुलसी माता का प्रतीकात्मक विवाह किया जाता है। यह विवाह शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
व्रत करने वाले भक्त पूरे दिन अन्न ग्रहण नहीं करते और रात को भगवान विष्णु का जागरण करते हैं। जागरण के समय भजन, कीर्तन और भगवान की महिमा गाई जाती है।
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देवउठनी एकादशी को शुभ कार्यों की शुरुआत का दिन माना जाता है। इस दिन से शादी, गृह प्रवेश, और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का मुहूर्त तय होता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु के जागने के बाद ही वे इन कार्यों में उपस्थित होते हैं, इसलिए देवउठनी एकादशी के बाद से ही सभी शुभ कार्य आरंभ किए जाते हैं।
तुलसी विवाह का आयोजन भी इस दिन विशेष होता है। हिंदू धर्म में तुलसी को भगवान विष्णु की प्रिय माना जाता है और इस दिन तुलसी माता का विवाह भगवान विष्णु से कराकर उनकी पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस विवाह से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।
देवउठनी एकादशी 2024 में 12 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन का धार्मिक महत्व अत्यंत विशेष है, क्योंकि यह भगवान विष्णु के जागरण का प्रतीक है। इस दिन से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है और यह व्रत मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी माना जाता है। देवउठनी एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।