चैंपियंस ट्रॉफी 2025 की चर्चा हर क्रिकेट प्रेमी की ज़ुबान पर है, और इस बार की चर्चा किसी जीत या हार पर नहीं बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच की उस अदृश्य ‘सरहद’ पर है, जो खेल के मैदान को भी पार कर जाती है। इस बार भारत की टीम पाकिस्तान के मैदान पर नहीं, बल्कि यूएई में अपने मैच खेलेगी। इस निर्णय के पीछे सुरक्षा चिंताओं से ज्यादा भारत-पाक के बीच वर्षों से चले आ रहे जटिल राजनीतिक और सांस्कृतिक कारण हैं। आइए, इस मुद्दे पर एक नए और दिलचस्प नज़रिए से बात करते हैं।
भारत और पाकिस्तान एक समय एक ही देश का हिस्सा थे। लेकिन 1947 में हुए बंटवारे ने दोनों देशों के बीच ऐसी ‘सरहद’ खींच दी, जिसने केवल जमीन को नहीं, बल्कि दिलों को भी बांट दिया। और ये सरहद समय के साथ और गहरी होती चली गई। अब ऐसा लगता है कि एक क्रिकेट टूर्नामेंट भी इस सरहद को मिटा नहीं सकता।
“भारत और पाकिस्तान के बीच का ये संबंध वैसा ही है, जैसे बचपन के दोस्त जो अब एक-दूसरे को पहचानते तक नहीं।” दोनों देशों की राजनीतिक परिस्थिति और दशकों के तनाव ने खेल के इस मैदान को भी बुरी तरह प्रभावित किया है।
भारत की टीम इस बार चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान की सरजमीं पर नहीं, बल्कि यूएई में खेलेगी। यह फैसला केवल सुरक्षा कारणों से नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है कि दोनों देश इतने नज़दीक होकर भी एक-दूसरे से इतने दूर क्यों हैं?
यूएई, जो एक तटस्थ मैदान बन गया है, जैसे क्रिकेट के कूटनीतिक मामले का सुलह करने का अड्डा हो। भारत का यूएई में मैच खेलना एक संकेत है कि भले ही सरहद की दीवारें ऊँची हो जाएं, खेल का मैदान ही वह स्थान है जहाँ दोनों देश शांति से मिल सकते हैं, बशर्ते कि वे इसे संभव बनाना चाहें।
भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट का खेल हमेशा से ही एक सियासी दांव-पेंच का प्रतीक रहा है। जब भी दोनों टीमें आमने-सामने होती हैं, तो मैच एक खेल नहीं, बल्कि एक जंग की तरह देखा जाता है।
एक दर्शक का कहना है, “यह केवल एक क्रिकेट मैच नहीं, बल्कि एक जंग का मैदान है, जहाँ दोनों देशों के लोग टीवी के सामने बैठकर अपने-अपने ‘सैनिकों’ का समर्थन करते हैं।”
खेल के मैदान पर भारत और पाकिस्तान के बीच के इस मनोवैज्ञानिक संघर्ष को देखते हुए, यह कहना गलत नहीं होगा कि क्रिकेट का यह खेल ‘गेंद और बल्ले’ का नहीं, बल्कि ‘सियासत और सांकेतिकता’ का खेल बन चुका है।
भारत और पाकिस्तान के बीच यह अदृश्य सरहद अब केवल राजनीति या सैन्य मामले तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह खेल के मैदान तक पहुँच गई है। सुरक्षा चिंता एक मुद्दा हो सकता है, लेकिन यह किसी से छुपा नहीं है कि दोनों देशों के बीच के आपसी मनमुटाव और ‘सांस्कृतिक विभाजन’ इस खेल की भावना पर भी भारी पड़ते हैं।
किसी क्रिकेट मैच में जीत या हार तो तय होती है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह विभाजन अब क्रिकेट का मैदान भी विभाजित कर रहा है। और शायद इस बार का ‘मुकाबला’ इस सवाल का जवाब दे सके कि कब तक यह सरहदें हमारे खेलों को बांटती रहेंगी?
इस बार चैंपियंस ट्रॉफी में भारत के लिए ‘हाइब्रिड मॉडल’ का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसका मतलब है कि भारत के मैच पाकिस्तान में न होकर, यूएई में होंगे। यह मॉडल पहले एशिया कप 2023 में भी देखा गया था, जब भारत ने पाकिस्तान में न जाकर श्रीलंका में अपने मैच खेले थे।
“यह ऐसा है जैसे कोई कहे, ‘हम आपके घर आएंगे, पर आपकी चौखट पर नहीं,'” एक क्रिकेट प्रशंसक ने कटाक्ष किया। यह मॉडल दिखाता है कि खेल का मैदान अब केवल खेल की जगह नहीं रह गया, बल्कि एक कूटनीतिक स्थल बन गया है।
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जैसे ही खबर आई कि भारत अपने मैच यूएई में खेलेगा, सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएँ आईं। कुछ ने इस फैसले का स्वागत किया, तो कुछ ने इसे लेकर कटाक्ष भी किए।
एक यूज़र ने लिखा, “जब दुश्मनी इतनी गहरी है, तो हम मैदान पर ही क्यों भिड़ें?” वहीं, दूसरे यूज़र ने मजाक में कहा, “भारत और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच भी अब ‘दूर से प्यार’ वाली बात हो गई है!”
भारत-पाकिस्तान के बीच यह खाई अब इतनी गहरी हो चुकी है कि यह देखना मुश्किल हो रहा है कि कब ये दोनों देश अपने विवादों को पीछे छोड़कर खेल के लिए एकजुट हो पाएंगे। एक खेल जो कभी दोनों देशों के बीच दोस्ती का पुल था, अब वही सरहदें बन गया है।
“क्या सच में खेल का मकसद यही है कि वह देशों को बांटने का काम करे?” यह सवाल आज हर क्रिकेट प्रेमी के दिल में उठ रहा है।
भारत और पाकिस्तान के बीच का यह सियासी और सांस्कृतिक विभाजन केवल खेल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक मानसिकता बन चुकी है। चैंपियंस ट्रॉफी 2025 शायद केवल एक टूर्नामेंट नहीं, बल्कि एक प्रतिबिंब है कि कैसे देश और उनके लोग बदल रहे हैं, और कैसे खेल अब राजनीति का मोहरा बन चुका है।
अब देखना यह है कि यह क्रिकेट की कहानी हमें और जोड़ती है या फिर सरहदों को और ऊंचा करती है।